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हिंदी कहानियां - भाग 25

गाँव की मस्ज़िद के किनारे एक छोटा सा तालाब था. मस्ज़िद में प्रवेश करने के पहले लोग उसमें अपने पांव धोया करते थे.


एक दिन एक फ़कीर अपने पांव धोने उस तालाब पर आया और फिसल कर गिर पड़ा. उसे तैरना नहीं आता था. डर के मारे वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा, “बचाओ…बचाओ..मैं डूब रहा हूँ. मेरी मदद करो.”

मदद की गुहार सुनकर बहुत से लोग तालाब के किनारे इकठ्ठे हो गए. उनमें से कुछ लोगों ने फ़क़ीर से कहा, “अपना हाथ दो. हम तुम्हें बाहर खींच लेंगे.”

किंतु फ़क़ीर उनकी बात अनसुनी कर हाथ देने के स्थान पर चिल्लाता ही रहा.

मुल्ला नसरूद्दीन भी वहाँ उपस्थित था. उसने फ़क़ीर की ओर हाथ बढ़ाकर कहा, “मेरा हाथ लो और बाहर आ जाओ.”

फ़क़ीर ने फ़ौरन मुल्ला का हाथ पकड़ लिया और सुरक्षित बाहर आ गया.

यह देख वहाँ खड़े लोग हैरान रह गए. उन्होंने मुल्ला से पूछा, “हम जब फ़क़ीर की मदद के लिए सामने आये, तो उसने सुना नहीं. फिर तुम्हें उसने कैसे सुन लिया?”

मुल्ला ने उत्तर दिया, “आप लोगों ने इससे कहा अपना हाथ दो किंतु मैंने कहा मेरा हाथ लो. एक फ़क़ीर बस लेना जानता है, देना नहीं. इसलिए इसने मेरी बात सुन ली.”

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